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चैतन्य साधक परिवार, पाल.


 

प्रती

*आयोजक, गोद्री कुंभ तथा,*

*चैतन्य साधक परिवार, पाल.*



परम पूज्य लक्ष्मण चैतन्य बापू जी इनके आदर्श विचारों पर चलने वाला एक साधक होने के नाते पूरी श्रद्धापूर्वक, 

*मैं सेवा अपराध से बचा..*

   *अब आप भी समाज द्रोह से बचें !*

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वर्ष 2008-2009 के दौरान पूर्व विधायक स्वर्गीय जगारावभाऊ चव्हाण के मार्गदर्शन में चैतन्य साधक परिवार बिबी द्वारा परम पूज्य लक्ष्मण चैतन्य बापूजी का सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उस कार्यक्रम का प्रभाव इतना अधिक था कि पूरे महाराष्ट्र के बंजारा समुदाय में एक नई चेतना पैदा हुई।  लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि स्व जगारावभाऊ इन्होंने पहले इस क्षेत्र में शैक्षणिक क्रांति लायी थी।  उनके द्वारा बनाए गए शैक्षणिक नेटवर्क के माध्यम से सैकड़ों बंजारा भाई विभिन्न उच्च पदों पर कार्यरत थे। इसका मतलब है कि समाज तार्किक और शैक्षणिक रूप से सक्षम था। बापूजी का सपना था कि बंजारा समाज एक स्वर्णिम इतिहास की पुनर्स्थापना करें। उनका सपना था कि समाज में फैला हूं अंधविश्वास और व्यसनाधीनता पूर्ण रूप से मिट जाएं। शिक्षा, विज्ञान और तंत्रज्ञान की सहायता से समाज आगे बढ़ कर विकास की याञा में शामिल हो और साथ ही साथ सामाजिक चेतना के निर्माण से उस उजाले की तरफ बढ़े जिसमें एक स्वर्णिम समाज का निर्माण हो।

    बंजारा समाज की एक स्वतंत्र संस्कृति है। बंजारा समाज की अपनी एक परंपरा है। अपनी बोली भाषा, रीति रिवाज, खानपान, पेहराव, रहन-सहन से वह अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखते हैं। ऐसे किसी भी धर्म और विचार से हमारा संबंध नहीं है जो ज्ञान और तर्क को नकारता है। जो अंधविश्वास और पाखंड को बढ़ाता है, जिसका इस्तेमाल बहुसंख्यक आबादी के शोषण के लिए किया जाता है। जबकि हम एक प्रतिवादी लोग हैं। बुद्धिवाद इंसान के आगे ब़ढ़ने के मार्ग को प्रशस्त करता है। हमारे देश में वर्तमान अराजकता और पतन का कारण यह है कि हमें अनुसंधान और विचार करने से रोका गया है और तर्क का प्रयोग करने पर हमारा दमन किया गया है। आदमी के पास विवेक है। यह उसे जांचने-परखने के लिए दिया गया है, न कि अंधा जानवर बनने के लिए। यह "जाणजो, छाणजो पच माणजो" ऐसे क्रांतिसिंह सेवादास वचनों से प्रतीत होता है। संसार में जो भी विवेक और आत्म-सम्मान के अनुरूप नहीं है, उसे छोड़ दिया जाना चाहिए। जो ज्ञान रखता है, और प्रकृति से अवगत है, वह दुःख से मुक्त है। किसी का केवल इसलिए अनुसरण मत करो कि किसी और ने ऐसा कहा है। दूसरों के सामने अपना ज़मीर मत बेचो। हर चीज में विश्लेषण और छानबीन करो। ऐसी महान सोच रखने वाला वह बंजारा समाज है।

     बंजारा समुदाय किसी भी धर्म की वकालत और प्रचार नहीं करता है लेकिन बंजारा समुदाय की एक अलग संस्कृति और व्यवहार (गोरधाटी) है।  पिछले दस हजार साल से बंजारा समाज कभी भी किसी धर्मांध या साम्प्रदायिक सोच में नहीं फंसा, लेकिन आज बंजारा समाज को ऐसी कट्टरता और साम्प्रदायिकता में नहीं घसीटना चाहिए.

     आज समाज के एक छोटे से हिस्से की जो भी आस्था है, चाहे वह चैतन्य साधक परिवार हो या संत परंपरा की आस्था हो, वह केवल लक्ष्मण चैतन्य बापूजी ने अपने त्याग-तपस्या, आचरण-विचार-संस्कार से प्रभावित सामाजिक ज्ञान सत्संग द्वारा ही निर्मित की है। संत परंपरा और कट्टर जातिवादी सोच या धर्म का कोई संबंध नहीं है।

    भारतवर्ष में संतों की एक परंपरा रही है चार्वाक, संत कबीर, संत रविदास, क्रांतिसिंह सेवादास जैसे महापुरुषों ने दार्शनिक ढंग से वास्तव समाज के सामने रखने का प्रयास किया है। इनके विचारों का मूल आधार मानवता थी ना कि धर्म। कहां गए थे सनातन धर्मी जब बंजारा समाज अंग्रेजों के साथ लड़ रहा था। कहां गया था आपका सनातन जब जन्म से पहले ही बंजारा समाज को गुनहगार घोषित कर दिया गया। हमें साहित्य के माध्यम से बदनाम किया गया। हमें थगी (चोर) कहा गया। आप के लिए भले ही red-carpet हो लेकिन आज भी समाज हर मूलभूत सुविधा से वंचित है। यह मैं इसलिए पूछ रहा हूं कि मेरे पास विवेक है और वह विवेक मुझे शिक्षा विज्ञान से मिला है।

    बंजारा समुदाय अभी भी गन्ना काटने का, उत्खनन, बढ़ईगीरी,खेतिहर मजदूर, मजदूरी, भाड़े के काम और कृषि कार्य ऐसे समाज के निचले स्तर का काम करता है। यह प्रमाण 90% से अधिक है और बंजारा समाज आज बहुत ही कठिन परिस्थिति से गुजर रहा है।  समाज का सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक स्तर इससे प्रभावित हो रहा है।  हम उम्मीद करते हैं कि आप इसे ध्यान में रखकर काम करेंगे. मैंने समाज के समस्याओं को ध्यान में रहते हुए कुंभा का समर्थन किया था। 

समाज इन समस्याओं से संघर्ष कर रहा है!


१) आदिवासी बंजारा समुदाय ST श्रेणी में शामिल हों।

२) बंजारा समुदाय की एक अलग जातिवार जनगणना हो।

३) हमारी जातिवार जनगणना के बाद हमारी संख्या के आधार पर हमें हमारा हक और अधिकार मिले।

४) आदिवासी बंजारा समुदाय पर लगाए गए नॉनक्रीमीलेयर को हटाया जाना चाहिए।

५) आदिवासी बंजारा समुदाय का प्रमोशन आरक्षण बहाल किया जाए।

६) बंजारा समुदाय की बंजारा गोरबोली भाषा को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए ।

७) आजादी के ७५ साल बाद भी तांडा सभी सुविधाओं से वंचित है।  इसलिए तांडे के सर्वांगीण विकास के लिए अलग से "तांडा सुधार योजना" शुरू की जाए। जिससे तांडा की हर सुविधाएं पूरी की जाए।

बंजारा समाज आज भी अपने संवैधानिक हक और अधिकार से वंचित है। बंजारा समाज आज भी अपने मूलभूत अधिकार के लिए लड़ रहा है। आज भी हमारी बहनें और बेटीयां सुरक्षित नहीं है। आज भी समाज कई ऐसे हालातों से लड़ रहा है जिसका हल निकालना जरूरी है। समाज की सामाजिक, शैक्षणिक और संवैधानिक मांगे अलग है। हमारी समस्याएं अलग है जिसका किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं है। आज बंजारा समाज शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी रूप से सक्षम होना जरूरी है।

      जितनी आस्था और श्रद्धा का निर्माण परम आदरणीय लक्ष्मण चैतन्य बापू जी के विचारों से मुझमें किया था उतनी मैंने लगाई, लेकिन मेरी शिक्षा, विज्ञान मुझे इससे आगे बढ़ने की अनुमति नहीं देता है।

   इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप भी यह विचार करें कि एक समय अंग्रेजों के साथ मिलकर थगी (चोर) कहने वाले.. हमें ऊपर से पानी पिलाने वालें , हमे अस्पृश्य समझकर हमारा अस्तित्व नकारने वाले आज अचानक आपके लिए रेड कारपेट क्यों बिछाये हुये है!

   सत्ता के गलियारों में नहीं बल्कि सत्ता का ताज तो हमने में पहना था। 12 साल तक मुख्यमंत्री और तिन दशक तक हमारे राजनीतिक प्रभाव में यह महाराष्ट्र बल्कि देश रहा है। महानायक वसंतराव नाईक इनको लगता तो सैकड़ों मंदिर खड़े कर दिए होते। लेकिन उन्हें पता था कि बंजारा समाज को शिक्षा और विज्ञान की जरूरत है। इसलिए उन्होंने मंदिर के जगह स्कूल का निर्माण किया। और उसी कारण हम आज शिक्षा और विज्ञान के इस दौर में अपनी जगह बनाए रखे हुए हैं।

   संतों का काम समाज प्रबोधन का है। लेकिन आप सत्ता के, सत्ताधारीयो के और राजनैतिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से आपका लगाव यह समाज मे संभ्रम फैलाने वाला है ।आप जैसी नौबत अगर अध्यात्मिक क्रांतिकारक लक्ष्मण चैतन्य बापूजी इनके ऊपर आती तो मैं दावे के साथ कहता हूं कि उन्होंने हिमालय की चोटी पर जाकर मौन धारण कर लिया होता। क्योंकि उन्होंने बंजारा समाज को स्वर्णिम समाज के रूप में देखने का सपना देखा था।

क्षमा करें..

*मैं सेवा अपराध से बचा..*

   *अब आप संत भी समाज द्रोह से बचें !*

      समाज के सामाजिक, शैक्षणिक राजकीय हित में जो बात हो वही करें। शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी रूप से बंजारा समुदाय सक्षम हो यही समाज के हित में है। अगर आप किसी धर्म की धर्मांध विचारों से समाज का समय बर्बाद करोगे तो वाकई आप के प्रति बंजारा समाज का विश्वास कम हो जायेगा। आपके विश्वसनियता पर सवाल उठेंगे इसलिए आप से अनुरोध है कि इस कुंभ में बंजारा समाज के संवैधानिक हक और अधिकार पर चर्चा हो।


    जय गुरुदेव ..

               जय सेवालाल!


*प्रा डॉ गजानन जाधव*

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