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रसग्रहण,सौंदर्य दर्शन


 *बोली*

             *रसग्रहण/सौंदर्य दर्शन*


सुप्रसिद्ध कवी भुजंग मेश्राम रचीत 'बोली'ये मराठी कवितारो अनुवाद गोरमाटी बोलीभाषामं करताणी ओरो 'रस'चाकन म आपणे हूड्यांग मेलरो छू..! 

            "जातीवंत सर्जनशील सायीत्येर भाषा 'बोल/बोलीज' रच्" नू सुप्रसिद्ध कवी डॉ.विठ्ठल वाघ कच्.गोरमाटी बोलीभाषा भी येनं अपवाद कू रीये भेनं?

          "धाटी ई शिवराळ वे सकेनी.धाटीर बोलीभाषा एक सामाजिक आविष्कार रच्,बोलीरो सौंदर्य,सौंदर्य शास्त्रेर आरसाम भी नावडेनी;ओरो सौंदर्य रानगधं केसुला नायी देखणा रच्.बोलीरो बाजार वे सकेनी  ई हाट भराये कुण?ई तीरपो  सवाल ये कवितारो केंद्रवर्ती सूत्र छ. 

        गोरमाटी बोलीभाषक गणसमाज ई एक जन्मजात कवी आन् गानप्रिय समाज छ.ये गानप्रिय जीवनशैलीमाईती गीद,संगीत,कला वजा करतूज आयेनी.कलात्मक शैलीती आपणे काचळीनं आरसी लगान खीलेवाळी याडीभेनेर 'बोली'ई रानटी लोकूर बोलीभाषा कू?तम भली को येनं गाळीर धाटी;पणन् गोरमाटी बोलीभाषा ई गारगोटीर तणगारा नायी रूईनज कोनी तो मनक्यानं भी माई भारती सळगावच्,आतरी  ई आंगार बोली छ,(विद्रोही)  तो ओर याडी कसेक वीये?ओर याडीरो कोयीज मांगेनी  पत्तो पणन् गोरमाटी बोलीर मण्णेर कडापो देकन;पत्तो मांगेर भुलाडी पाडन कडापोज ओपर वलम जावच्,आतरी ई सौंदर्य संपन्न 'बोली' छ ई ये कवितार मध्यवर्ती कल्पना छ. 



तम रानटी रानटी कोचो

आन् एकजवणा ओ कलात्मक कू? 

मार याडी काचळीनं लगावच् आरसी

बापेनं कुचू म आरे तुरे

मार होटेपं आवच् कतराक सब्देर लोंडो

तम केजरे छो ई गाळीर धाटी तो भली को;पणन्

गारगोटीर तणगारा नायी मार गोरमाटी

सळगावच् तमारे मेलाळी रूईनं भुरूभुरू

'येरी याडरो'

कांयी सळगावच् ई मनक्यानं मायीती भारती

ओर याडीर कोयीज मांगेनी पत्तो

छातीपं बेसं जू दक मातरम् 

ओपर वलमच्... ! 


             कवी भुजंग मेश्रामेर भावस्पंदनेनं छीपणो घणो मसकल छ.गोरमाटी बोलीभाषारे सौंदर्येपं ऊ आतरा का वलम गो?ई प्रश्न सहज निर्माण वच्.दस्तुरखुद्द भुजंग मेश्राम ई धाटी जीवन जगमेलो छ.गोरमाटी बोलीभाषा तो ऊ आविष्कारेसह बोलतोतो."बोली"ई कविता ओर अनुभूतीमाईती वेपडी हूयी छ. 

          गोरमाटी बोलीभाषा आज दनेतीदन आविष्कार शुन्य वेती जारी छ.बोलीभाषारो सामाजिक आविष्कार (समाजभाषा विज्ञान) ई ओर स्वतंत्र अस्तित्वेर खर ओळख रच्.गोरमाटी बोलीभाषा ओर सामाजिक आविष्कारेसह जतन वेणू नू कवी भुजंग मेश्रामेर केणो रं. 

          'मोवन्या भीया!कसो रं तू?'कांयी वत्तर हूकानाको भडा तू!'. 'म को,कांयी वेगो?'संमेलनाध्यक्षीय भाषण याडी भाषामं करेर रं नी भडा?'

           कवी भुजंग मेश्राम आज आपणेमं छेई पणन्  ओर ढाळ मातरम् मनं मारे याडीभाषामं लकेनं प्रेरणा देती रच्."पेरसापेन कवी भुजंग मेश्रामेर आत्मानं सदगती देणू ई आरदास करूचू..!


"तम भली को ई गाळीर/शिवराळ धाटी;पणन् गारगोटीर तणगारा नायी मार गोरमाटी सळगावच् तमार मेलाळी रूईनं भुरूभुरू".


               कवी भुजंग मेश्रामेर ई विषयानुरूप प्रासादिक भाषाशैली तो कळजेनं कना भीड जावच् जेरो पत्तो भी लागेनी.कवी ई गोंडी भाषिक छ तरी भी ये कवितामाई 'मार गोरमाटी' ई जीभाळीरो भाषिक  रूप वापरन कवी गोरमाटी बोलीभाषापरेरो आपणो आसली प्रेमभाव व्यक्त करन गोरमाटी बोलीभाषकेनं आपण वाङ्मयीन अभिरूची प्रगल्भ करेनं प्रवृत करच्.

             कवीनं जू गोरमाटी बोलीभाषा आपण वाटच् जुज आपणेनं भी ऊ आपण बोली वाटेन लग जावच् ई ये कवीतारो विशेष छ. 


"येरी याडरो! कांयी सळगावच् ई मनक्यानं माईती आन् भारती.."


आतरी ई आंगार बोली छ तो येर याडी कसेक वीये?हानू तीरपो सवाल भी कवी हुबो करच्.कवीर ई शंका भी वास्तव छ. 

           मूळ मराठी कवितार रचनामं 'इची भयीन! ई रूप छ. गोरमाटी बोलीभाषा वेवारेमं येनं पर्याय रूप न रेयेरयेती अनुवादेमं म 'येरी याडरो! ई रूप वापरो छू येती कवितारो आशय सौंदर्य घणो उठावदार वेगो छ. ये कवितारे आशय सौंदर्येनं 'येरी याडरो!' ई रूप घणो खलगो छ.

          म आतं येर समीक्षा करीयूं तो ऊ विषयांतर ठर जाये.जेष्ठ समीक्षक याडीकार पंजाब चव्हाण येपर अधिकार वाणीती बोलीये.आतं ई मारो विषय छेई. 


*घुंगटो होटो पाड,मूंडो देकलनी ये...*

*काळी छ क्, गोरी छ..?*


           ये बोली रूपी नवलेरीरो घुंगटो होटो पाडन ओरो रूप सौंदर्य आपणेनं परकाणू ईज आतं मारो कर्तव्य छ.


"येरी याडरो! कांयी सळगावच् ई मनक्यानं माईती आन् भारती

येर याडीरो कोयीज मांगेनी पत्तो

छातीपं बेसं जू दक मातरम् ओपर वलमच्..!"


             ये कवितारे समारोपीय  चरणेमाईर ई भाषाशैली तो वेदना आन् विद्रोहेरो ह्रदय स्पर्शी सुरेख संगम ई एक आकर्षक सौंदर्य स्थळ ठरगो छ. 

              कवी भुजंग मेश्रामेर सृजनात्मक प्रतिभा प्रांतेर ई कविता एक उत्कृष्ट नमुना छ.

              जतरी जहाल छ;ओतरीज मवाळ,आस सौंदर्य संपन्न छ गोरमाटी बोलीभाषा;पणन् ओर याडीरो कोयीज मांगेनी पत्तो.. पत्तो मांगेवाळोज ओर कडापेपं छातीपं बेसं जू वलम जावच्..! 

          गोंडी भाषिक रेन भी कवी भुजंग मेश्रामेनं गोरमाटी बोलीभाषा आपण वाटच् आन् हामनेनं हामार याडीभाषामं बोलेनं भी लाज छूटच्,पत्तो मांगणो तो घणो घड्म छ..! 


प्रा.नेमीचंद चव्हाण अनुवादित कवी पी.विठ्ठल चव्हाणेर "भाषा" ई कविता आतं हारदं आवच्... 


*गाळी देये पूरता*

*तो भी रेणू,*

*पणन् जीवत रेणू*

*मनक्यार भाषा...*

*कमसकम*

*मनक्या नामेरो जनावर*

*कांयी तो भी बोलतोतो भा*

*आतरो तो सिद्ध वीये..!*


                *भीमणीपुत्र*

        *मोहन गणुजी नायक*

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