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महानायक वसंतराव नाईक:एक दूरदर्शी नेता......! -बी.सुग्रीव-


 

महानायक वसंतराव नाईक:एक दूरदर्शी नेता......!

          -बी.सुग्रीव-9834182823

     21 दिसंबर 2021 को मेरे मित्र डॉ. प्रो.दिनेश सेवा राठोड़ ने मुझे एआईबीएसएस(AIBSS)का 69 वा स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में प्रकाशित होने वाली स्मरणिका(Souvenir) में एक लेख लिखने के लिए कहा इसके लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूं।ऑल इंडिया बणजारा सेवा संघ ने मातृसंस्था के रूप में हमेशा समाज हित को प्रथम स्थान दिया है। महानायक वसंतरावजी नाईक साहब ने इस संघटन के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का कार्य  किया। महाराष्ट्र तथा देश के बणजारा जनजाति और अन्य वंचित लोगों के उत्थान के लिए नाईक साहब ने भरीव कार्य किए  है। यह वही समय था जब गोरमाटी अपने बच्चों को पढने के लिए पहली बार तांडे से दूर भेजने के लिए तैयार हुए थे। *"नायक साहेबेर काळ आवगो छ मासा.म बळीरामेन (मशहूर कवी प्रेमदास महाराज वनोलीकर)दिग्रसेन हास्टलेम सिकायेन लेजावुंचू"* यह बात  मा.प्रातपसिंगजी आडे साहब ने प्रेमदास महाराज के पिताजी से कही थी।

       उन दिनों तांडे से दूर पढ़ाई के लिए बच्चों को भेजने के लिए माता पिताओं कि मानसिकता तैयार करना उतना आसान काम नहीं था फिर भी महानायक वसंतरावजी नाईक साहब का आदर्श लोगों ने सामने रखकर अपने बच्चों को तहसील और जिले कि जगह पढ़ने के लिए भेजने लग गए। मशहूर कवी प्रेमदासजी महाराज वनोलीकर के पिताजी ने मा. प्रतापसिंगजी आडे साहब के कहने पर प्रेमदास महाराज को पांचवी कक्षा में पढ़ने के लिए दिग्रस भेजा था।नाईक साहब के भाषण बहुजन तथा अभिजन दोनों के हित में होते थे। आपका सामाजिक तथा राजनीति में उदय एक बड़ी बात मानी जाती है।

     नाईक साहब के भाषण काफी प्रेरणादाई होते थे।आप भाषण में शिक्षा के उपर अधिक भर देते थे। राजस्थान में फरवरी 1959 को सांभर इस जगह पर बणजारा संमेलन का आयोजन किया गया था।इस संमेलन के लिए नाईक साहब  रामसिंगजी भानावत (पदमश्री),मदनसिंह चौहान (अजमेर),खडगसिंहजी गोराम,गुढानिवासी बाघसिंह सोलंकी के साथ आए थे।इस संमेलन में प्रमुख अतिथि के नाते नाईक साहब ने समाज के सामने मौलिक विचार रखे।सभा को संबोधित करते हुए नाईक साहब ने कहा कि " *समय बदल चुका है। राजाओं के राज चले गए हैं। लोकतंत्र का जमाना आ गया है इसलिए वोट कि किंमत को पहचानो।अपने बच्चों को खूब पढ़ाओ-लिखाओ।यह मत समझो मेरा बेटा दो रूपए रोज कमाता है।उसे पढ़ लिख कर योग्य बनाओ,वह बडा होकर बीस रूपए कमाएगा यह सोचना चाहिए। शिक्षा बहुत जरूरी है। शिक्षा से ही जीवन में परिवर्तन आता है। राजस्थान सरकार से मिलकर समाज कि मुलभूत आवश्यकताओं कि आपूर्ती के लिए दबाव बनाएंगे।"* नाईक साहब और रामसिंगजी भानावत राजस्थान कि तरह दुसरे आलग आलग प्रदेश में जाकर समाज को शिक्षा,आरक्षण और संघटन का महत्व समझाते थे।सामुहिक विवाह जैसे कार्यक्रम को बढ़ावा देने में नाईक साहब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सामुहिक विवाह को केवल बढ़ावा ही नहीं दिया बल्कि कार्यक्रम में सम्मिलित होकर बहुमूल्य मार्गदर्शन भी नाईक साहब करते थे। इतना ही नहीं समाज जागृति के लिए दिग्रस,सोमगड(जिंतूर), जळगाव और अन्य जगह पर महाअधिवेशन कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।     

    कवी और साहित्यकारों को नाईक साहब साथ सहयोग देते थे। संत कवी ईश्वरसिंगजी महाराज, प्रेमदासजी महाराज वनोलीकर,जालमसिंग नायक जैसे समाज सुधारकों को आपने हमेशा प्रोत्साहन देने का काम किया है।

      नाईक साहब को एक बार उत्तर प्रदेश के अपने समाज के लोग फेरी का काम करते हुए पुसद में मिल गए थे।सबको खाना खिलाकर नाईक साहब ने कहा कि किसी एक जगह बस कर बिजनेस करना चाहिए।कबतक आप ऐसे गली गली घुंमते रहोगे?नाईक साहब की यह बात हमें कल्याणपूर तांडा जि एट्टा उत्तर प्रदेश के अपने बुजुर्ग लोगों ने बताई। जहां कि खेती मर जाती है वहां कि संस्कृति भी खत्म हो जाती है उसी तरह जो लोग दर दर भटकते रहते हैं वे लोग अपनी संस्कृति कि हिफाजत सही ढंग से नहीं कर सकते है। उत्तर प्रदेश के गोरभाई दो -दो, तीन-तीन महीने अपने परिवार से दूर रहकर फेरी का काम करते रहते है।घर परिवार के रिश्ते अच्छे बने रहे और अपने पुर्वजों के रीती रिवाज और विरासत संभलकर रहे यही सोच नाईक साहब कि एक जगह बैठकर बिजनेस करने कि सलाह देने के पिछे रही होगी।

      किसान भी कारखानों के मालिक बणना चाहिए ऐसे नाईक साहब कहते थे। सिर्फ खेती के भरोसे नहीं रहना चाहिए। साथ में छोटा बडा बिजनेस करते रहना चाहिए।कोई भी बिजनेस एक दिन में बडा नहीं होता है। इसके लिए समय लगता है मगर एक दिन बिजनेस में अच्छा नाम होता है।आज इस महंगाई के जमाने में बहुत सारे लोगों को दो टाईम का खाना भी नहीं मिल पाता है।एक तरफ चंद लोगों के पास जरूरत से ज्यादा धन दौलत है और दूसरी तरफ गरीब-गरीब होता जा रहा है।आने वाले दिनों में जिनके पास खुद का बिजनेस, खेतीबाड़ी और नवकरी है ऐसे लोग ही स्थिर रहकर सम्मान से जिंदगी जी सकेंगे।

    अलीगढ़ (युपी)के धुबीया तांडे में नाईक साहब कि तस्वीर हमें देखने को मिली। तस्वीर में नाईक साहब लिखते हुए दिखाई दे रहे है।लॉट(Lord) मेकसिंग नायक सबाना जिन्हें हाईकोर्ट नाम से भी जाना जाता था। इन्हीं के यहां पर  नाईक साहब की तस्वीर है। धुबिया में उस समय न्याय पंचायत करने के लिए हाईकोर्ट हुआ करती थी।इस कोर्ट में लोकतंत्र जैसा न्याय नसाब होता था।इसी जगह पर अलिगढ और आस पास के ज़िले से लोग न्याय पंचायत करने के लिए आते थे।

    राजस्थान और उत्तर प्रदेश कि तरह तेलंगाना में भी नैकोंडा इस जगह पर सामाजिक विषयों पर चर्चा का आयोजन किया गया था।इस सभा में नाईक साहब ने बहुमूल्य मार्गदर्शन किया था।समुचे देश में गोरमाटी को एक ही सुची में आरक्षण मिले इसलिए 1966 में रकाबगंज गुरुद्वारा दिल्ली में सामाजिक हितचिंतकों ने मिटिंग का आयोजन किया था।इस बणजारा समाज सेवक शिबीर में इंदिरा गांधी, यशवंतराव चव्हाण, अशोक मेहता,के.ब्रम्हानंद रेड्डी उपस्थित थे।इसी मिटिंग में बणजारा जनजाति को अनुसूचित जनजाति (Shedule Tribe) में सम्मिलित करने का निर्णय लिया गया था। 

      पं.जवाहरलाल नेहरू 1961को राज्य के मुख्यमंत्री को आरक्षण से संबंधित एक पत्र लिखा था।आरक्षण से दुय्यम दर्जे का राष्ट्र निर्माण होता है इसलिए यहां से आगे किसी जाति या जनजाति को संवैधानिक आरक्षण में सम्मिलित ना करें ऐसे सक्त आदेश पं.जवाहरलाल नेहरू ने दिए थे।नाईक साहब कांग्रेस में होते हुए भी संवैधानिक आरक्षण कि लढाई लढ रहें थे ये विशेष बात थी।

    दिग्रस जि.यवतमाल में 1953 में जो विशाल सभा हुई थी उस सभा में लाल बहादुर शास्त्री (तत्कालीन रेल मंत्री) प्रमुख अतिथि के तौर पर मौजूद थे।इसी संमेलन में बणजारा जनजाति को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित करने की घोषणा लाल बहादुर शास्त्रीजी करने वाले थे।सभा के पहले लाल बहादुर शास्त्रीजी ने आलग आलग प्रदेश से आए हूए समाज के प्रतिनिधियों से बातचीत करने का निर्णय लिया।औरय्या (उत्तर प्रदेश) से प्रितमसिंगजी नायक भी इस प्रतिनिधी सभा में उपस्थित थे।उस समय उनकी स्नातक की पढ़ाई जारी थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के बणजारा समाज को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित करने से मना कर दिया।अनुच्छेद 340 के तहत पिछड़ा वर्ग से बणजारा जनजाति को संवैधानिक आरक्षण मिले ऐसी बात उन्होंने रखी और उसी बात पर वे आखरी तक अटल रहे।

     नाईक साहब और रामसिंगजी भानावत समाज को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित करने का प्रयास कर रहे थे,उसी समय उत्तर भारत के (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड) के बणजारा समाज के प्रतिनिधि प्रितमसिंगजी की बातें मानकर जनजाति आरक्षण का विरोध करने लगे।आरक्षण से संबंधित आपसी मतभेद को देखकर अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग में बणजारा समाज को शामिल करने कि घोषणा को  लाल बहादुर शास्त्रीजी ने नजर अंदाज कर दिया।नाईक साहब और रामसिंगजी भानावत ने उत्तर प्रदेश के बणजारा समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल कराने के लिए लगातार प्रयास जारी रखें थे मगर उत्तर प्रदेश के  हमारे अपने लोगों को तब अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का महत्व ही समझ में नहीं आ रहा था।

    रामसिंगजी भानावत जब कभी मीटिंग रखना चाहते थे उसी समय उत्तर प्रदेश में प्रितमसिंगजी नायक और उनकी टीम भी मीटिंग रखा करते थे। कानपुर में 1973 के नवम्बर महीने के पहले हफ्ते में एआईबीएसएस का छठवां महाअधिवेशन लेने का तय हो गया था।उस समय हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के समाज के लोगों ने प्रितम सिंह निर्मल L.L.M कि अध्यक्षता में 4 अक्तूबर 1973 को सहारनपुर तहसील के ग्राम बिहारीगढ़ में सभा संपन्न करवाई थी।इस सभा में जनजाति आरक्षण का बिरोध  किया गया और एआईबीएसएस संघटन का साथ न देने का फैसला लिया गया।हाम लोगों कि पहचान क्षत्रिय बणजारा है और इस पहचान को बरकरार रखना है तो हमें जनजाति में किसी भी हालत में शामिल नहीं होना चाहिए ऐसे निर्णय उस समय मिटिंग लेकर तय किय गए थे ।

 उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश के चंद लोगों ने जिस तरह अनुसूचित जनजाति आरक्षण का महत्व समझ नहीं सके ठिक उसी तरह मध्य प्रदेश के बणजारा भाईयों ने भी नाईक साहब और रामसिंगजी भानावत जी कि दुरदृष्टी को समझ नहीं पाए।

    उज्जैन मध्यप्रदेश में 6 अक्तूबर 1976 को माननिय नारायणसिंगजी गरासिया(पुर्व मंत्री मध्यप्रदेश)कि अगुवाई में एक सभा का आयोजन किया गया था।इस सभा में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामा चरण शुक्ल शामिल हुए थे।नाईक साहब ने मध्य प्रदेश के बणजारा समाज का समावेश अनुसूचित जनजाति में होना चाहिए ऐसी बात रखी तभी सभा में गड़बड़ी चालू हो गई।हम लोग क्षत्रिय बणजारा है। हमें जनजाति का आरक्षण नहीं चाहिए ऐसी बात कहते हुए चंद लोगों ने यहां बिरोध करने के लिए खड़े हो गए।

     हमारे लोगों की अज्ञानता और सरकार कि उदासीन रवैए से एक पिछड़ी बणजारा जनजाति आदिवासी आरक्षण कि हकदार होने के बाद भी आज़ादी के पच्छहत्तर साल के बाद भी अनुसूचित जनजाति में शामिल हो न सकी। समाज का शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के उपर नाइक साहब ध्यान देते थे। किसी भी समाज में जब तक शिक्षा का प्रमाण नहीं बढेगा,तब तक वह समाज प्रगति की राह पर सही ढंग से चल नहीं सकता। इस बात को नाईक साहब भलिभांती जानते थे इसलिए नाईक साहब ने संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत शिक्षा और नवकरी में आलग से 4 प्रतिशत आरक्षण विमुक्त जनजाति को दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजस्थान और दुसरे दुसरे राज्यों में आरक्षण के लिए बडे पैमाने में लोग रास्ते पर उतरकर लढाई लढ रहें हैं। कहीं जगह पर तो हिंसात्मक घटनाएं भी घटित हो रही है।

     बणजारा स्टडी टीम बणाने के पिछे नाईक साहब की ही प्रेरणा थी।स्टडी टीम के माध्यम से पुरे देश के बणजारा समाज का डाटा इकट्ठा किया गया था।यही डाटा आगे चलकर जांईट पार्लियामेंट सिलेक्ट कमिटी के सामने रखा गया। नाईक साहब के बाद में बणजारा भुषण रणजीत नायक साहब और अन्य सामाजिक चिंतको ने अखरी तक जनजाति आरक्षण के लिए संघर्षरत रहे। अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए नाईक साहब ने और रामसिंगजी भानावत ने जो प्रयास किए थे उसे आगे बढ़ाने का काम स्टडी टीम के माध्यम से जारी रखा गया मगर यहां के हुक्मरान लोगों ने विमुक्त जनजाति के साथ धोखाधड़ी की है। आयोग बिठाते हैं और उस आयोग कि सिफारिशों को कचरे के डिब्बे में फेक देते हैं।

   आप खुद परिवर्तनवादी थे इसलिए उन्होंने चातुर्य वर्ण व्यवस्था का समर्थन नहीं किया।नाईक साहब कहते थे,"जो हमें मदत करते है वे किसी भी जाति और धर्म के क्यों ना हो वे हमारे है ऐसा मानना चाहिए।" सभी जाति धर्म के लोगों को साथ में लेकर संवैधानिक तरीके से सुशासन करने का एक आदर्श उदाहरण नाईक साहब ने हमारे सामने रखा है।नाईक साहब के परिवर्तनवादी विचार हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।

                   संदर्भ:

@भूमिपुत्राचं देणं-प्राचार्य जयसिंग द.जाधव

@बणजारा दर्पण-भाई प्रेमसिंग जाधव

@कांग्रेस ही आर एस एस की मॉं है-प्रा.विलास खरात

@उत्तर प्रदेश क्षत्री बणजारा प्रस्ताव-04/01/1973

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