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बणजारा समाज का स्वर्णिम इतिहास अधूरा रह गया.....!


 

*बणजारा समाज का स्वर्णिम इतिहास अधूरा रह गया.....!* 

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       इतिहास संशोधक, साहित्यिक आदरणीय महेशचंदजी बणजारा सर का आज प्रथम स्मृतिदिन है। उनके विचारों को मैं प्रथम विनम्रतापूर्वक अभिवादन करता हूं।आज ही के दिन यानी 14 जनवरी 2021 को दिल का दौरा पड़ने से हम सब को छोड़कर महेशजी सर चले गए।महेशजी सर के जिवन के बारे मैंने लिखना शुरू ही किया था,इतने में अचानक उनका निधन हो गया। आप जी के जाने से समाज का बहुत बड़ा नुक़सान हुआ है। वैयक्तिक मुझे महेशचंदजी सर के आकस्मिक निधन से काफी दुःख हुआ है।

     वरिष्ठ साहित्यिक तथा समाजसेवी मंगतरामजी माल्हा (अमृतसर)पंजाब से है जो कि महेशजी सर के संपर्क में लगभग छह सात साल रहे हैं।महेशजी सर के बारे में वे बताते हुए भावूक हो गए थे।वे कहते है ' *घुमंतू समुदाय के जितने भी कबिले थे उनके बारे में महेशजी ने घुंम घुंमकर काफी मेहनत से जानकारी इकट्ठा कि थी। घुमंतू समुदाय में से एक सांसी/भांतू समाज है जिसे पासी भी कहते हैं इनके बारे में हम पांच लोगों ने मिलकर लिखने का प्रयास जारी कर दिया था। किताब का पच्छाहत्तर प्रतिशत काम भी पुरा हो चुका था इतने में महेशजी अचानक हमे छोड़कर चले गए।जैसे ही मुझे महेशजी के निधन के बारे में पता चला मैं बहुत रोया।'* मंगतरामजी महेशजी सर के बारे में आगे बताते हुए कहा कि'महेशजी एक विद्वान,समाज चिंतक और दिल के सच्चे इंसान थे। मैं करीब देढ़ महिना उनके घर पर रुका था।चार बार मुझे उनके घर जाने का मौका मिला।एक बार गुजरात जाने का प्लान बनाता हूं साथ में जाएंगे ऐसा मुझे महेशजीने बताया था,मगर मैं गुजरात जा न पाया।उनका उपकार सांसी समाज कभी नहीं भुलेगा'ऐसी जानकारी मंगतरामजी ने मुझे फोनपर दी।मंगत राम माहला, अमृतसर (पंजाब),महेशचंदजी बणजारा, जयपुर (राजस्थान), सुन्दर सिंह छाहढी (दिल्ली),राणा सूफी अल्ला दितता पंवार(लाहौर) डॉ.गुलाम नबी(लाहौर) पाकिस्तान यह *सांसी धर्म एक इतिहास* पुस्तक के लेखक थे लेकिन अब मंगत राम माहला इस किताब के लेखक है।अंदमान जेल के बारे में महेशजी को लिखना था इसलिए उन्होंने काफी जानकारी इकट्ठा कि थी। साहित्यिक, पत्रकार और कलाकार हमेशा महेशजी के संपर्क में रहते थे।'मंगतरामजी माहला, साहित्यिक इंद्रसिंगजी वल्जोत(चंदीगढ),प्रा.मोतीराज राठोड़ सर,भिमणीपुत्र मोहन नायक, जयराम पवार सर (महाराष्ट्र) जैसे साहित्यिक लोग लगातार एक दुसरे के संपर्क में रहते थे। वरिष्ठ पत्रकार कमलजी धर्मसोत सर(अमेरिका), वरिष्ठ पत्रकार शंकरजी आडे साहेब (सेवाभूमी) महाराष्ट्र और दिलराजजी बणजारा(गुजरात) और बहुत सारे जाने माने साहित्यिक, पत्रकार और कलाकार हमेशा महेशजी सर के संपर्क में रहते थे।

    पहली बार महेशजी और मेरी फोनपर मुलाक़ात 2019 में हुई थी। कानपुर देहात में हम लोग सेवाभाया कि जयंती उत्सव में शामिल होने के लिए गए थे।आगले दिन रात में पता चला कि इसी बेडामहू तांडे के तीन गोरमाटीओं को अंग्रेजों द्वारा काले पानी कि सजा दी थी। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अनेकों वीरों ने अपनी जान गंवा दी थी। जिन जिन लोगों ने स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लिया था और अपनी जर जोरू जमिन खो दी थी ऐसे लोगों को स्वतंत्रता सेनानी पहचान मिले और उनकी तीन पिढीऔं को मान सम्मान और पेंशन मिले इस लिए हमने अल हिंद पार्टी के माध्यम से एक पत्र केंद्र सरकार को भेज रहे थे।इसकी जानकारी जब महेशजी सर को हुई तो उन्होंने मुझसे बातचीत की और कहा कि डॉ.प्रा.भांगिया भूकिया ने भी अपनी किताब में एक आदमी को काले पानी कि सजा मिली थी इसका जिक्र किया है।

      अदरणीय महेशजी सर ने मुझे दो आडीओ भी भेजें थे।सांसी समाज को आजादी के आंदोलन में इतनी फांसी दी गई थी कि इस घुंमतू जनजाति का नाम आगे चलकर फांसी से पासी हो गया। मंगतरामजी भी बता रहे थे कि सांसी(पासी) उर्फ़ भांतू जनजाति के सुल्ताना ने डेढसो क्रांतिकारी वीरों का एक दल बनाया था जिसने अंग्रेज़ो के नाक में दम कर दिया था।शहिदे आजम भगतसिंह के पहले 7 जुलाई 1924 को धोखे से अंग्रेज़ो ने सुल्ताना को फांसी दे दी।

    भारत में अनेकों वीरों ने अपनी स्वाधिनता कि लढाई में योगदान दिया था मगर उनके बारे में हमें सही मायने में आज तक पता ही नहीं है। महेशजी कहते थे कि ' *1857 के पहले भारत में अनेकों लड़ाईयां हुई जिसमें बहुत सारे लोगों ने जानें गंवा दी थी मगर उनका नामो निशान मिटा दिया गया। भारत का इतिहास सही ढंग से सामने लाने कि जरूरत है। बालदिवस 14 नव्हंबर को नहीं  दशम गुरु के दीवार में चिनवाये गए लाड़ले साहिबजादों के बलिदान कि याद में मनाया जाएगा और महात्मा जोतीराव फुले के स्मृतीदिन पर आनेवाले दिनों में शिक्षक दिन  मनाया जाएगा* ' ऐसी उम्मीद महेशजी सर को थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने गुरू गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन,9 जनवरी 2022 को, घोषणा करते हुए कहा था कि 26 दिसंबर को,गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्रों साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत को,'वीर बालदिवस' के रूप में मनाया जाएगा।इस तारीख को चुना गया है क्योंकि इस दिन को साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह के शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता था,जो मुगल सेना द्वारा सरहिंद (पंजाब) में छह और नौ साल की उम्र में मारे गए थे।यहां बताना जरूरी है कि हमे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के बारे में कोई द्वेष नहीं है । डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के पहले महात्मा जोतीराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया था।इस योगदान कि वजह से 28 नवंबर शिक्षक दिन के रूप में मनाया जाना चाहिए था ऐसी जनभावना हैं। 

     महेशजी के बारे में क्रिष्ण कुमार पुरोहित (हरियाणा) कहते हैं कि 'महेशजी हमारे यहां आते थे।उन्होंने मुझे बणजारा विश्व सम्मेलन कर्नाटक में हिस्सा लेने के लिए आज से दस बारह साल पहले निमंत्रण दिया था और मेरी आने जाने कि टिकट भी बुक करवा रहे थे मगर मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए मैं जा नहीं पा सका।महेशजी पहली बार यहां हमारे घर पर छत्री के बारे में जानकारी लेने के लिए आए थे।'गढी बोलनी जि. रेवाड़ी हरियाणा में बणजारा समाज द्वारा निर्मित एक छतरी और एक कुंआ आज भी मौजूद है। व्यापार करने के लिए पुरे भारत में और विश्व के कुछ देशों में बणजारा समाज घुमां करतें थे। जहां पर भी तांडा रुक जाता था वहां पर कुछ महिनें बिताने के बाद अगली जगह पर तांडा रुक जाता था। पच्चास पच्चास मिल पर ऐसी अनेकों छत्रियां इस इलाके में आपको मिल जाएगी ऐसे पुरोहित जी बता रहे थे।

     'बचपन में मेरे दादाजी बताते थे कि नमक और कपडे का व्यापार बणजारा समाज करता था। गढी बोलनी के पास  बणजारा व्यापारी आकर रुकते थे।अकाल के समय में बणजारा समाज ने बडा योगदान दिया था'ऐसे हमारे पिताजी और दादाजी बताते थे जो मैंने सुन रखा है।'महेशजी आब इस दुनिया में नहीं रहे इसकि जानकारी मैंने पुरोहित जी को दी तभी वे कहने लगे 'ओ हों! महेशजी जिंदा होते तो आब तक मेरे पास में आ कर चले गए होते।वे नियमित रूप से मुझे भेट भिजवा देते थे।काफी जानकारी थी उनको। यहां पर छतरी के पास एक फारसी में लिखा पत्थर था उसका फ़ोटो महेशजीने ली थी।'महेशजी हरियाणा, राजस्थान ही नहीं पंजाब, कर्नाटक, महाराष्ट्र और अन्य जगहों पर नियमित संशोधन के सिलसिले में और सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए जाते थे। राष्ट्रीय बणजारा परिषद द्वारा आयोजित साहित्य संमेलन में हिस्सा लेने के लिए महेशजी पुणा महाराष्ट्र में आए थे। बणजारा समाज का स्वर्णिम इतिहास वे लिख रहे थे। आधी जानकारी लिख भी चुके थे इतने में उनका अचानक निधन हो गया।मलुकी किताब जब प्रकाशित की थी उसकी एक प्रति मुझे महेशजी ने पोस्ट से भेजी थी।

      महेशजी सर केवल इतिहास संशोधक तक सिमित नहीं रहे वे सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन में भी आगे रहते थे। पुर्व सांसद हरिभाऊजी राठोड जी का एक कार्यक्रम फुलेरा में करवाया था।फुलेरा कि एक माध्यमिक पाठशाला में पाणी कि मोटार,पंखे और दुसरी ज़रुरी चिजो के लिए सहायता भी कि थी।स्मशान भूमि में सो पेड़ लगवाएं थे। सामाजिक कामों में उन्हें काफी रुचि थी।

    सन 2004-05के करीब अपने बेटे भरतजी को साथ में लेकर महाराष्ट्र में औरंगाबाद,पोरीयागड आए थे। औरंगाबाद में ज्येष्ठ सायित्यिक तथा आंदोलन जीवी प्रा.मोतीराज राठोड सर और ज्येष्ठ सायित्यिक ग. ह. राठोड़ सर से मिले थे।समाज, संस्कृति के बारे में अपने बेटे को भी जानकारी हो इसलिए उन्होंने जान बुझकर अपने बेटे को साथ में लाए थे।महेशजी को अपनी भाषा नहीं आती थी इसका उन्हें दुःख था। आपने बेटे को अपनी भाषा और संस्कृति का गहरा अध्ययन होना चाहिए इसलिए उन्होंने सोच समझकर भरतजी को भारत में अपने साथ में घुमाना चाहते थे। दुर्भाग्यवश भरतजी का 2009 में ॲक्सिडंट में मृत्यु हो गई।

     महेशजी अपना निजी दुःख भुलाकर निरंतर अध्ययन मनन करके  समाज को मुख्य धारा से जोडना चाहते थे।2019-20 से वे ऑल इंडिया बणजारा सेवा संघ कि एक कोअर कमिटी बनाकर उस कमिटी के नाम पर बॅंक में एक खाता खुलवाकर  संघटन और समाज को मजबूत करना चाहते थे।जिस समाज का सामाजिक संघटन मजबूत होता है वही समाज तरक्की कि राह पर सबसे आगे रहता है। निस्वार्थ लोगों को महेशजी पहचान लेते थे और उनके साथ देर तक बातें करने लग जाते थे। महेशजी के संपर्क में आने वाले हर एक व्यक्ति को महेशजी ने बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है। 

   महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ निवृत्त अधिकारी मा.डि.सी.राठोड साहब महेशजी के घर पर चार बार गए थे। महेशजी के बारे में बता रहे थे कि 'महेशजी बहुत ही ज्ञानी और समाज प्रेमी थे।महेशजी के घर में एक खोली सिर्फ किताबों से भरी पडी है।'

     महेशजी को मिलने के लिए हम जाने ही वाले थे इतने में कोव्हिड नामक बिमारी का अचानक उद्भव होने से जा नहीं पाएं।आखरी बार 26 दिसंबर 2021 को मेरी उनसे बात हुई थी।महेशजी के जन्मदिन पर मैं दो शब्द लिखना चाहता था।सर कि तबियत ठीक नहीं रहती थी इसलिए मैं ज्यादा फोन भी नहीं करता था।कुछ पुछना होता तो मैं एक मेसेज छोड देता था।सर को जब समय मिलता था तो वे आडिओ मेसेज मेरे लिए छोड़ देते थे।20 जनवरी 2020 को गुरु गोविंद सिंह महाराज के जन्मदिन के अवसर पर हमने एक झुम मिटिंग रखी थी।इसी झुम के माध्यम से हमने 'शीख धर्म में बणजारा रणबांकुरों का गौरवशाली योगदान और जातीगत जनगणना करना क्यूं ज़रूरी है ?इस दो विषय पर चर्चा रखी थी। मुख्य अतिथि के रूप में महेशजी सर झुम मिटिंग में मौजूद रहे।श्वास लेने को दिक्कत हो रही थी इसलिए महेशजी इस मिटिंग में बोल नहीं पाए मगर पुरी झुम मिटिंग आखरी तक सुनीं थी। दुसरे दिन सरजी ने फोन लगाया और कहा तबियत ठीक न होने कि वजह से बोल नहीं पाया मगर झुम मिटिंग में अच्छी चर्चा चल रही थी ऐसा कहा। यहां से हम नियमित रुप से  ऐतिहासिक, सामाजिक विषयों पर चर्चा करते रहे।

    महेशजी का जन्मदिन किस तारीख को है मैं जानना चाहता था।मेसेज का रिप्लाइ मुझे तुरंत नहीं मिल पाया। मैं काफी चिंतित हो रहा था और उसी दौरान मुझे कन्नड साहित्यिक डॉ एन एस जाधव सर से पता चला कि महेशजी का अभि अभि निधन हो गया है।मै स्तब्ध रह गया, मुझे जिस बात कि चिंता हो रही थी आख़िर में वही हुआ।सरजी आप बणजारा  स्वर्णिम इतिहास को जल्दी से जल्दी बाहर लाइए ताकि हमें और समाज को इससे प्रेरणा मिलेगी इस बारे में सरजी से मैं चर्चा करता रहता था। महेशजी के पास बणजारा स्वर्णिम इतिहास कि काफी जानकारी थी।आपजी बहुत सारे साहित्यिको को संदर्भ ग्रंथ और महत्वपूर्ण जानकारियां निस्वार्थ भाव से देते थे। ज्येष्ठ साहित्यिक ग ह राठोड़ सर को पाच छह संदर्भ ग्रंथ कि पिडीएफ महेशजी ने भेजी थी इसकी जानकारी मुझे प्रगतिशील विचारवंत ग ह राठोड़ सर ने दी। 

      महानायक वसंतराव नाईक साहब ने 1959 में सांबर(राजस्थान) में समाज को संबोधित किया था इस कि जानकारी भी मुझे महेशजी सर ने ही पहली बार दी थी।बाद में मैंने वसंत भूमिपुत्राचं देन इस मराठी किताब में नाईक साहब के राजस्थान दौरे के बारे में डिटेल में पढा।

   राजस्थान में नवम्बर 2022 को  फुलेरा जाने पर एक बात कि जानकारी मिली कि मृत्यु भोज पुरी तरह से बंद करना चाहिए इस बारे में पाच छह महीने पहले एक महापंचायत हुई थी। महापंचायत में कुछ सामाजिक मुद्दों पर चर्चा की गई थी उसमें मृत्यु भोज पर भी चर्चा हुई। मृत्यु भोज बंद होना चाहिए इसके बारे में पद्मश्री रामसिंगजी भानावतजी ने फरवरी 1959 में सांभर में आयोजित बणजारा एकता संमेलन में मार्गदर्शन किया था।कुछ राज्यों में हम देखते हैं कि मृत्यु भोज पर बकरा मटन,चिकन खिलाते हैं।लाखो रुपए खर्च हो जाते हैं।जो लोग अपने माता-पिता कि सेवा अच्छी कि हो तो ऐसे लोगों को मृत्यु भोज देने कि जरूरत नहीं है। मृत्यु भोज पर हजारों, लाखों रुपए खर्च होने से कर्ज़ के चक्कर में फंसने कि हमारी शक्यता नकारी नहीं जा सकती।जो लोग साहूकार के जाल में फस जाते हैं वे लोग ज्यादा असहाय और लाचार बन जाते है।इस बात कि अच्छी जानकारी महेशजी को थी इसलिए वे कभी किसी के मृत्यु भोज पर खाने नहीं गए। महेशजी कभी किसी के मृत्यु भोज पर खाने के लिए नहीं गए मगर उनके मृत्यु उपरान्त मृत्यु भोज के नाम पर साढ़े तीन लाख रुपए खर्च किए गए।क्या यह विडंबना नहीं है तो फिर क्या है?

    अरविंदभाईने बताया कि पिताजी कि मृत्यु के बाद हमने मिटिंग रखी थी। पिताजी तो कभी किसी के मृत्यु भोज पर खाने के लिए नहीं गए थे इसलिए मृत्यु भोज करना या नहीं करना इसलिए हम सभी कि राय लेना चाहते हैं। लोगों ने कहा कि  मृत्यु भोज रखना जरूरी है, इसलिए हमने मृत्यु भोज रखा ऐसा अरविंद भाई ने बताया।लोग क्या सोचेंगे यही हमारी बड़ी समस्या है।लोग क्या सोचेंगे इससे पहले हम क्या सोचते हैं यह देखना जरूरी है। लोगों कि राय समय के साथ बदलती रहती है इसलिए हमे ही सदसद विवेक बुद्धि से निर्णय लेने कि जरूरत है। महेश सर विचारवंत थे इसलिए उन्हें स्मृतिदिन पर वैचारिक रूप में याद करना चाहिए। महाराष्ट्र से हमारे कुछ साथी को लेकर अगले साल फुलेरा में महेशजी के  स्मृतिदिन के उपलक्ष्य पर स्टडी सेंटर का उद्घाटन करने के लिए हम जरूर जाएंगे।' इतिहासचार्य महेशचंदजी बणजारा शोध संस्थान और स्टडी सेंटर के माध्यम से हरसाल विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।इस साल महेशजी सर के प्रथम स्मृति दिन पर तीन दिन की झुम मिटिंग रखी है। तीन दिन महेशजी के विचार और कार्य हम लोग सुननेवाले है।महेशचंद जी बणजारा सर के कार्य आनेवाली पीढ़ीओं  को सदैव प्रेरित करते रहेंगे।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


                         बी.सुग्रीव

                      9834182823

                                    

संदर्भ:

@ *वसंत* 

भूमिपुत्राचं देणं

-प्राचार्य जयसिंग द.जाधव

@ मुलाकात -अरविंद महेशचंदजी बणजारा फुलेरा

अक्टूबर 2022

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