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भाषा वेवस्था आन् गोरमाटी बोलीभाषा..


 *काकडवांदा-*


*भाषा वेवस्था आन् गोरमाटी बोलीभाषा..?*




        "भाषाशास्त्र"ई गोरमाटी बोलीभाषक गणसमाजेनं नवाडो विषय छेई. गोरमाटी बोलीभाषा ई जलमेतीज शास्त्रीय/अभिजात भाषा छ.गोरमाटी बोलीभाषक गणसमाजी लोकजीवनेरो भाषा वेवार,परंपरागत मौखिक सायीत्येर परक करन दीटे केलं तो येर परचीती आवच्. 

         वेकरण,आलंकार,रस आन् ओर मालकीर आलंकारिक सब्देर खजीनेती गोरमाटी बोलीभाषा सीकासीक भरन वतलरी छ.ओरो कडापो आतराज छ क्,ऊ ओर मालकीर लीपीमं लीपीबद्ध छेई. 

          'लेंगी,नातरो,ओळंग,टेर, ढावलो,मळ्णो,हावेली,वाजणा आन् डड्याळ गीद ये गोरमाटी बोलीभाषामाईर वाङ्मय परकार तो जगेर पूटेपरेरी १८ कूळेर ६००० भाषाम भी लाबणो मसकल छ. 

       येर बारेमं श्री.न.गजेंद्रगडकरेर केणी आतं धेनेम लेणू गरजेर छ."भाषामं सुसंस्कृत - असंस्कृत आसो भेद रेयेनी.समाज असंस्कृत-रानटी रे सकच्;भाषा  असंस्कृत-रानटी रेयेनी.रानटी(?)भाषार जर परक करन दीटे केलं तो आपणेनं हानू आडळ आये क्,ये भाषामं सदा सुसंस्कृत केरागी जे भाषानायी विशिष्ट पद्धत रच्,घटक रच्,सब्द धन सदा वणान रच्.येनेर बारेमं आसो समज वेयेर कारण हानू छ क्,आसे भाषारो अभ्यास जना मिशनरी लोक कीदे जना भाषार अभ्यास करेर ओनेर एक विशिष्ट;पणन् अशास्त्रीय पद्धत रं...

              ये लोक नवी भाषार परक लॅटिने सरीक भाषार आयेना माईती कीदे.लॅटिन भाषामं कतरी विभक्ती छ,लिंग भेद,रूप कतराक छ ये नंजरेती नवी भाषासामू दीटे.सात विभक्ती प्रत्यय छेई,तीन लिंग छेई,क्रियापदेर परकार घणोसो छेई हानू दकाये क्,ऊ भाषा रानटी,ओन् वेकरण छेई ई निकष लगाये.. 

              खरो दीटे तो भाषामं रानटी,अशुद्ध आसे भेद रेयेनी.जे भाषा आज बोलेमं आवच् ओ सेर सेज भाषा आन् आंग्रेजी,रशियन,फ्रेंच,हिंदी ये भाषिक नंजरेती सारकेज कार्यक्षम छ"(गोरमाटी बोलीभाषा आनुवाद, भाषा व भाषाशास्त्र).

            मूंडेमाईती उच्चार वच् जकोण ढाळ ईज भाषारो खरो माध्यम रच्,तो पच् बोली आन् भाषा ई भेद रेगोज कतं?

            गोरमाटी बोलीभाषा वेवारेमं मराठी 'चार,जवार,चाळीस'ये सब्देर उच्चार 'च्यार,ज्यार,च्याळीस'हानू ध्वनीत वच्.ये उच्चार भाषा सापेक्ष छ.ये उच्चारेनं अशुद्ध केतू आयेनी. 

       गोरमाटी बोलीभाषा उच्चार आज आंग्रेजी भाषार प्रभावेती घणे भ्रष्ट वेतू दकारे छ. "बाॅल,बॅट,व्हिडीओ कॅमेरा"आसे आंग्रेजी सब्द गोरमाटी बोलीभाषा वेवारेमं ढळगे छ.ये ढळगे जे सब्देनं गोरमाटी बोलीभाषा वेवारे माईती हद्दपार करतू आयेवाळो छेई.भाषा ई वेवती गंगा छ.बदलते समीयानुसार गोरमाटी बोलीभाषा लीपीबद्ध वेणू गरजेर वेगो छ.! 

             "संस्कृत है कूप जल,भाषा बहता नीर"संत कबीरेर ई केणो ठीकज छ.ये परभाषिय चिन्ह,आन् सब्द घरेमं न् लीदे केलं तो अभिव्यक्ती सामर्थ्य धोकेम आये सवायी रं कोनी. 

         "ॲ,ऑ" ये उच्चार  गोरमाटी बोलीभाषा वेवारेमं छेई;पणन् ये चिन्ह गोरमाटी बोलीभाषा लीपीमं रेणू गरजेर वेगो छ.

         दूसरी भाषार सब्द खोळेम़ं लेये सवायी गोरमाटी बोलीभाषानं प्रमाण रूप मळ सकेनी. 

          राजभाषा हिंदीमं "ळ"ई उच्चार छेई,ओर जागं "ल"ई उच्चार वापरन आपणो भाषा वेवार भगाते रच्.आज ओ भी "ळ" ये उच्चारेनं हिंदी भाषामं भेळेर वचार कररे छ. 

         "चॅर,जॅर,चॅळीस"ये उच्चार हानू लीपीबद्ध वेयेपं भाषाविज्ञानेर डीलेती 'स्वनेर अद्वितीय आन् मुक्त विनियोग ठरीये.

           भाषार डीलेती गोरमाटी बोलीभाषारो अभ्यास आजेलगू हूवोज कोनी छ,जो कीदे ओ ओनेर आयेना माईती देकन कीदे.गोरमाटी बोलीभाषारो स्वतंत्र आसो ऐतिहासिक भाषाशास्त्र केनी हूबो करतूज आये कोनी.

              मराठी "कुत्रा"ये सब्देनं गोरमाटी बोलीभाषामं "का़ंदळ्या" ई स्वतंत्र पर्याय छ.आज ई सब्द पाच् पडगो,ओर जागं "कतरा" ई सब्द आमलेमं आवगो छ. 

       सवार जर कोयी "कुत्रा > कुत्ता > कतरा" ई रूप हूड्यांगं लान गोरमाटी बोलीभाषानं 'क्लोराईजड् भाषा"केताणी ओनं वगोयेर कोसीस करेपं सवारेर पीडी सामळेन नकामे न् रेणू येरसारू गोरमाटी भायीभेनं  सब्द धनेनं जू आपणे गीदेमं परोताणी जतन करन मेलछांडे छ,जूज आज हामनेन भी लकणीर परपंचेमाईती सब्द धनेनं जतन करन मेलणू लागेवाळो छ.

            गोरमाटी बोलीभाषारो समावेश घटनारे ८ वे अनुसूचीमं एक "भाषा" करन वेणू ये मा़ंगणीसारु आज आपण से नानेमोटेर सामुहिक प्रयत्नेर गरज छ.

           'रसानुकूल चास,विषयानुरूप भाषाशैली,नादानुकारी सब्द रचना' ये से सौंदर्य स्थळेती गोरमाटी बोलीभाषा परीपूर्ण छ..!

            राजा भरतरी सरीको सायीत्यीक आपणो राजपाट,नंजरेमं नावडेनी आस "धडकी'नं सास देन तांडेर आश्रीत वच्?,सायीत्य, कला, वेकरणेरो भगत राजा भोज,महाकवी कालिदास ये प्रतिभावंत सायीत्यीकेरो जीव तांडेमं वजळागो छ येर लारेर कारण छ तांडेर वाङ्मयीन धाटी आन् वाङ्मयीन गोरमाटी बोलीभाषा..! 

             पेना गोरमाटी बोलीभाषा ई वाङ्मयीन डीलेती कतरी श्रीमंत रं येर परचीती आवच्. 

        संस्कृत भाषानं प्रमाण रूप देयेवाळो "पाणिनी" ये सब्देरो आरत "पणिपुत्र" वच् हानू सुप्रसिद्ध संशोधक डॉ.निरज साळुंखे कच्.ये विधाने परती "पाणिनी" ई गोरमाटी सीद्ध वच्. 

          पाणिनीनं धूंडन काडेपं ओर कंती वणान सामगरी मळ सकच्..! 


              *भीमणीपुत्र*

       *मोहन गणुजी नायक*

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