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गोरमाटी बोली भाषारो सोंदर्य


 *काकडवांदा-*


*गोरमाटी बोलीभाषामं 'भाषा'रो सौंदर्य..!*


              "गोरमाटी"बोलीभाषा ई गावंढळ लोकूर गावंढळ बोली छेई तो ऊ एक पेनार सुसंस्कृत गोरमाटी बोलीभाषिक गण समाजेर सुसंस्कृत आस "स्वतंत्र सायीत्यीक भाषा" छ.गेयता ओरो प्रमुख लक्षण छ.भाषार २३ आलंकार कतो गेणागाटाती ऊ लदबद छ. 

           गोरमाटी बोलीभाषारो रूप सौंदर्य,सौंदर्य शास्त्रेरे आरसाम भी नावडेनी,आतरी ऊ देकणी.. गोरपान छ. 

          गोरमाटी बोलीभाषानं  मौखिक सायीत्येर समृद्ध परंपरा छ.गोरमाटी बोलीभाषारो ई भाषिक रूप वजाळेमं न् आणू करन भाषिक  व्यवस्था बोलीभाषार मौखिक सायीत्येनं "फोकलोर"कतो 'मुर्ख लोकूरो गेन'केताणी ओनं सायीत्य सीमेमं नाकाबंदी कीदे. 

         भाषा व्यवस्थार ये कावाभरे नीतिती बोलीभाषा   कयीक साल अभ्यासकेर नंजेरेमं आकीरंडी वेगी.बोली करन घटनात्मक संरक्षणेती बोलीभाषा वंचित रेगी.ई वस्तुस्थिती केनी नाकारतू आवं कोनी. 

       "बोलीभाषा सायीत्येमं चालेनी" ये कावाभरे नितीनं गोरमाटी बोलीभाषा मौखिक सायीत्य एक जबरदस्त आव्हान ठरच्.


*घागरो तो पेरी मसरूरो*

*लावणेती खलरी नार,*

*मोड मोडं करं सणगार..!*


बगर लावणेर घागरेती गोर याडीभेनेरो रूप सौंदर्य जसो फीकोथूस पड जावच् ओसोज बगर आलंकरेर गोरमाटी बोलीभाषारो रूप सौंदर्य फीकोथूस पड जावच्. 

           गोर धाटी ई वाङ्मयीन धाटी छ आसे ये वाङ्मयीन धाटीर बोलीभाषा बगर आलंकरेर रेज सकेनी.लिपी छेनी करन ओनं भाषारे पंगते माईती वटाडेरो ई कुणसो भाषा सीद्धांत?

          भाषाविज्ञान बोली आन् भाषा ये भेद नीतिनं नाकारच्. 'भाषा ई ध्वनी रूप संकेत प्रणाली छ'.गोरमाटी बोलीभाषा जरी 'बोली'करन वराजरी वीये तरी ऊ भाषार सौंदर्येती कतो २३ आलंकर,नव रस आन् नव रसेर स्थायीभावेती सजधजन छ. 

          "गीद"ओरो जन्म सीद्धांत छ.'गीद' ई सब्द 'गीत'ये सब्देरो अपभ्रंश रूप छेई तो "गीद आन् गीत" ये "गद्य आन् पद्य" वाङ्मयेर दी स्वतंत्र डील छ. 

         गीद ई गोरमाटी बोलीभाषिक गण समाजी लोकजीवनेरो सहज बोलणो रच्.ईज गोरमाटी बोलीभाषार स्वतंत्र अस्तित्वेर एकमेव ओळख छ. 

          भाषारो सौंदर्य खलेसारू जो तंत्र वापरेमं आवच् ओ तंत्रेनं आलंकर कच्. भाषार आसे २३ आलंकर केमेले छ.जेमाईर शब्दालंकार आन् अर्थालंकार आसे दी वान छ,ये भी गोरमाटी बोलीभाषामं आढळ आवच्. 


*शब्दालंकार-*


येमं फगत शब्देर चमत्कारेर छापेती भाषारो सौंदर्य उमटन दकावच्."अनुप्रास,यमक,आन् श्लेष"ये तीन आलंकार शब्दालंकारेमं गणावच्.


*१,अनुप्रास-*


कानकेरो कनीया कूणं घडायोरे..? 

कूणं लगायो जोड साकळी.. 

छोरी लापळीरे.. 

छोरी लापळी दीकावं कांदारी कूपळी.. 

छोरी लापळीरे...!

कानकेरो कनीया बाप घडायोरे..

दोसतीया लगायो ओनं जोड साकळी.. 

छोरी लापळीरे.. 

छोरी लापळी दीकावं कांदारी कूपळी.. 

छोरी लापळीरे..!! 


        आरे,ओ छोरीर कानेमाईर कर्णफुल (कनीया) कूण घडायो वीये आन् ओन् जोड साकळी जोडेवाळे ऊ कूण वीये?जेती ऊ गोजीरवाणी (लापळी) छोरी,कांदार कूपळीनायी दकारी छ. 

          कानेमाईर कर्णफुल ओ छोरीनं ओरो बाप घडा दीनो छ आन् ओनं जोड साकळी ओरो दोस्ता जोड दीनो छ;करनज तो ऊ छोरी कांदार कूपळीनायी गोजीरवाणी दकारी छ.


          ये लेंगीर भाषा शब्दालंकारेर (अनुप्रास)उत्कृष्ट नमुना छ.येमं "लापळी,कूपळी,साकळी"ये चमत्कारिक रूपेती भाषारो सौंदर्य घणो खलरो छ. 


*२,यमक-*


घड ला हीरीया.. 

घडं ला रे.. 

जोडी समार जोडी

घडं ला रे.. 

जोडी छरे ओरो डावोडुंगर

वाट वाट जाती

चळाईरी भाजी खाती

चळाईरो डोळा तूटो

सासूरो पेट फूटो.. 

चक्की छो हेली छो...!


      ये हीरीया,मार ससरेर वयेरसूमार धेनेम रकाडन ओरसारु जोडी घडान ला.(देकन ला)मार सासू चळाईर भाजीर घण लालचण.हानूज एकवणा वाट वाट चालतू चळाईर भाजी खाती गी घाईघाईमं चळाईरो डोळा गलागो आन् पेट फोडा लीदी. 

          ओरो जोडीदार डावोडुंगर छ भेनं ई हारदं रकाडेस न् तो लीयायीस एकांदी मोटीयारमाल..? 


      ये रचनामं भाषार दी आलंकारेर साज छ.येमं 'यमक आन् अतिशयोक्ती' ये दी भाषार आलंकर स्पष्ट छ.'हास्य रसेती' भी ये रचनार भाषा संपन्न छ. 


*३, श्लेष-*


खेती कररे गेरीया बळदेती

गेरीया तारे खेतीमं पडगोरे तोटो

मारी हासली वेचन करं भरती

खेती कररे गेरीया बळदेती..!


     ये गेरीया,तार खेतीमं तोटो आवगो छ भेनं;घबरायेस मत.मार हासली वेचन तोटो भरन काडलेस;पणन् खेती छोड मत,"हीमतेती/बळदेती"खेती कर! 

        "बळदेती/बळेर जोरेपं,बळदेती(बैलाने) आसे दी आरतेर श्लेष येमं दकावच्. 

         श्लेष आलंकार ई श्लेष आन् अर्थालंकारेमं भी आढळ आवच्. ये रचनामं श्लेष ई शब्दालंकारेर रूपेम स्पष्ट छ. 


*अर्थालंकार -*


भाषार २३ आलंकारेमं ३ तीन आलंकर ये शब्दालकारेमं गणावच् तो बाकी २० आलंकार ये अर्थालंकारेमं गणावच्. 


*उपमा -* (अर्थालंकार) 


येमं भाषारो सौंदर्य ओरे रचनारे आरतावणी परेनं उटावदार वेतो रच्. 


चांदा जपजो रात आंदारी करजो... 

चांदा जपजोर.. 

चांदा छांयी चांदणी,चारोळीसी रात रे.. 

तू तो आजेरी रात रंजाणं कर लं, 

चांदा जपजोर...!


       ये चांदा,आज मारो मारूडा मनं भेटेनं आयेवाळो छ.तू छी तो आजेर रात रजा ले लं,कतो तारो वजाळो चांदणीपं पाड जेती रात चारोळी सरीक वेजाये आन् मारे मारूडानं मनं भेटेनं सबागी जाये. 

       काळकीट रात कोनी भेनं,चारोळीसी रात करेस..! 

       ये रचना माईर बोलीनं "चारोळीसी रात" ये आरतावणीती भाषारो आलंकार मळमेलो छ. 

           "चारोळीसी रात" अर्थालंकार उपमा आलंकारेरो उत्कृष्ट नमुना छ..!


          अर्थालंकारेमं जे वस्तूनं उपमा देमेलन रच् ओनं उपमेय कच्,आन् जे वस्तूर उपमा देमेलन रच् ओनं उपमान कच्. उद:-


*चारोळीसी रात* येमाईर "चारोळी" ई उपमान छ तो "रात" ई उपमेय छ..! 


        ई छ गोरमाटी बोलीरो भाषा सौंदर्य! 

         "सायीत्येमं बोलीभाषा चालेनी" ये भाषा व्यवस्थार नीतिनं गोरमाटी बोलीभाषा एक आव्हान ठरच्...!! 


*संदर्भ-


गोरमाटी बोलीभाषेचे सामाजिक आविष्कार आणि लोकजीवन

- भीमणीपुत्र

- संपादन- प्रा.भारती अनिल मुडे,कोल्हापूर


            *भीमणीपुत्र*

    *मोहन गणुजी नायक*

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