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काकळवांदा


 *काकडवांदा-*


*स्वनविज्ञान आन् गोरमाटी बोलीभाषा-*


            सब्देर स्वन उच्चारण ईज खरो भषारो स्वरूप रच्. स्वन उच्चारणे परती भाषार स्वतंत्र अस्तित्व बेतावच्.गोरमाटी बोली भाषा भी येनं अपवाद छेनी.भाषार स्वन उच्चारणेर नातो सिंधू भाषार लिपीमं धूंडेर प्रक्रिया आज गतीमान वेरी छ.

              गोरमाटी बोलीभाषा स्वनेर उच्चारण पद्धत ई सिंधू भाषार लिपीती मळतोजुळतो दकवच्.गोरमाटी बोलीभाषा सब्द "गरू"ई सब्द येरो एक उत्कृष्ट नमुना छ.जेती कांयी अभ्यासक गोरमाटी बोलीभाषारो अस्तित्वज नष्ट करन गोरमाटी बोलीभाषाऩ बेदखल करेर कोसीस कररे छ. 

          " सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहासेर लेखक"कच् क, "सिंधु स्थान में माल की आपूर्ती  करने के लिए बंजारो के कारवा चलते थे! उन्होने उनकी मातृभाषा मरहटीही होने से पूरे भारत में (नेपाल तक)  इस भाषा को पहुचा दिया था!" (पृ.क्र.२०१ पु.श्री.सदार) 

        येज पुस्तकेमं एक जागं लेखक केमेलो छ. बंजारा संस्कृतीरो नातो सिंधु संस्कृतीती जादा जुळच्.

       ये से वाते धेनेम लेनं आपण धाटी,भाषा जतन करणू गरजेर छ.बहुसंख्येर मुंडेमाईर स्वन उच्चार लिपीबद्ध वेणू ई भी गरजेर छ. 

       गोरमाटी बोलीभाषा वेवारेमं *ण* आन् *ळ* ये दी स्वतंत्र स्वन छ.येनेर जेरजको स्वतंत्र स्वनांतर भी छ. परभाषीय लेखक गोरमाटी बोलीभाषा स्वनांतरेर कतरा स्पष्ट रूपेम लिपीबद्ध करच् येरो उत्कृष्ट उदाहरण *धुणी तपे तीर* ये ग्रंथेर लेखक  हरि राम मीणा देमेलो छ. 

          विज्ञापकेर मुंडेती सामळो जकोण *धुणी* ईज स्वनांतर लेखक हरि राम मीणा लिपीबद्ध करमेलो छ."धुणी"ईज स्वनांतर भाषाविज्ञानेर कसोटीम खरो उतरच्...! 

         आपणे उच्चारण पद्धती परेन आपणे याडीभाषार स्वतंत्र  पेनो लाबेवाळो छ.ई भी वात ओतरीज खर..! 


संदर्भ-

गोरमाटी बोलीभाषेचे सामाजिक आविष्कार  आणि लोकजीवन

संपादन - प्रा.भारती अनिल मुडे


                 *भीमणीपुत्र*

        *मोहन गणुजी नायक*


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काका

   तमारो यी लेख पेनारी बोली बचाये जगू री तळमळ वतावं छ. कायी लोक *ण* ये सबदे रे जागे पर *ळ* वापरन पेनारी बोली रो रसकस खतम कररे छ. ये लेखेपरे सी मनं कायी सबद सूझे छ.


*पेनारी बोली आन चूकी रो वूच्यार*


पणि- पळी

हारपणि - हारपळी

पणयारी -पळयारी

पणघाट - पळघाट

खरपणी- खरपळी

पाणी - पाळी

नायकण - नायकळ

वाजणा - वाजळा

पींजण्या - पींजळ्या

पीलोण - पीलोळ

पेरणी - पेरळी

नींदाण- नींदाळ

खरपाण - खरपाळ

नांगरणी - नागरळी

वखरणी -वखरळी

कोळपणी -कोळपळी

खूणो - खूळो

खूणीया - खूळीया

रूणझूण - रूळझूळ

बणज - बळज

बणजारा - बळजारा

बाळणो - बाळळो

पळ्णो - पळ्ळो

कणगी - कळगी

कणगा - कळगा

करणो - करळो

करणी -करळी

ठणको - ठळको

ठूमणा -ठूमळा

रूमणा - रूमळा

गूंगणा - गूंगळा

गोरणी - गोरळी

गोफण - गोफळ

नागफण - नागफळ

फण - फळ

फणस - फळस

पण- पळ

नाचण - नाचळ

बेसणो - बेसळो

ऊठणो - ऊठळो

ऊंगणी - ऊंगळी

जणणो - जळणो

गळ्णो - गळ्ळो

चलण - चळण

गोळ्णी - गोळ्ळी

नवण - नवळ

रण - रळ

रणीया - रळीया

रणजीत - रळजीत

भाणजो - भाळजो

भणका - भळका

भणकावू - भळकावू

भाणीया - भाळीया

बणीया - बळीया

बणीयाणी - बळीयाळी

बणठणन - बळठळन

फलाणी - फलाणी

फलाण्या - फलाळ्या


वोजी आसे ककयीक सबद केतू आये.जे सबदे मायी *ण* येरे जाग *ळ* बोलेसी आन लकेसी ,सबदेरो रूप बदल जावं छ. आर्थ बदल जावं छ. कायी -कायी सबदे रो तो आर्थेरो बे आर्थ हे जावं छ. करण जे लोक *ण* येरे जागापर *ळ* बोलं छ ,लकं छ वोनून मारी कळकळीरी वींती छ क, आसी चूकी रो चलण बंद करो.*पेना री बोली बचावो ,बोली बढावो*


        *हारपणि जिजाताई राठोड*

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