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गोरमाटी बोलीभाषार स्वतंत्र अस्तित्वेर वेकरणीक आन् समाज जीवनेर ओळख!

 

*थु:पेल*-


*गोरमाटी बोलीभाषार स्वतंत्र अस्तित्वेर वेकरणीक आन् समाज जीवनेर ओळख!*


               'वैयाकरण'ये संस्कृत शब्देरो जडेबूडेर धातू गोरमाटी बोलीभाषामं धुंडतू आवच् "विकर > वेकरण = भाषार डीलेर विस्तारित रुप सिद्ध करेवाळो शास्त्र कतो वेकरण" (वैयाकरण) ई उत्पत्ती सिद्धांत का न् मान्य वेणू? 

           स्वर,व्यंजन,समास,संधी, धातू,प्रकृती-प्रत्यय भाषार से से वीकरेवाकरे डीलेर नियमन कतो वेकरण (वैयाकरण) ई विवेचन स्वतंत्र सोजारो विषय छ. (वाते मुंगा मोलारी भाग २,संपादन ॲड, चेतन कुमार नायक)

            अनुस्वारेर हुड्यांग जर *य* इ व्यंजन आवगो केलं तो ओरो उच्चार अनुनासिक्य ठरच्. उद:- 'बांया (नोकर), ढींया (च्या जवळ),भुंयी (कुंभारीण),जुंये (ऊवा), सींयाळो (हिवाळा),रांयी (राई)

                ये सब्द उच्चार मराठी सब्द उच्चारेती न्यारे छ;पणन् वेकरणेर डीलेती ई उच्चार प्रकृती मराठी वेकरणेती मळतीभळती छ.कती कती अनुस्वारेर हुड्यांग "व" ई व्यंजन आवगो केलं तो भी ओरो उच्चार अनुनासिक्य ठरच् ई स्वतंत्र सोजारो विषय छ. उद:- भुंवा (भुंगा),सूंवाळी (पुरी),संवसार (संसार.

            मराठी "राई" ये सब्देरो उच्चार गोरमाटी बोलीभाषामं "रांयी" हानू अनुनासिक्य निकळच्.मराठी "राई" इ उच्चार अनुनासिक्य छेई. 

               गोरमाटी बोलीभाषार उच्चार प्रकृतीमं "ल आन् र" ये आक्षरिक व्यंजनेर उच्चारेमं घणो गोंधळ दकावच्.'कल्डी,नसल्डी,वल्टो, जल्दी ये सब्देर उच्चारेरवणा "अ" ई स्वर बंडाऊ पडेती ये सब्द जोडाक्षर सीद्ध वच्.ई परकार "स्वर लोपेमं गणावच्. " र"व्यंजन आक्षरिक आन् कंपीत रेयेरयेती ये उच्चारेरवणा जीभ जरा घसरच् ई उच्चार प्रकृती कती कती इंग्रजीर वळणेपं जातू दकावच् तरी पणन् ये अपभ्रंश रूपेरो स्वतंत्र अस्तित्व धेनेमं लेणू गरजेर छ. 

             *ताडो सीळो करं!* ये आसासेर रुपावलीमाईरो *ताडो* ई अपभ्रंश रुप छ. ई आसासो बुडे बायी माणस देते रच्.जेती ओनेर जीभेर घसरण वेताणी *तारो* ये रूपेर जागं *ताडो* इ रुप आमलेमं आमेलो छ.

          स्वन उच्चार ई पेलो मनक्यारो जसो व्यक्तीनिष्ठ उच्चारेम गणावच् आन् पच् ऊ उच्चार वस्तुनिष्ठ ठर जावच्, जुज "ताडो" ई रुप प्रचलित वेमेलो छ. 

          आज *ताळो सीळो करं!* इ रूपावली भी हुड्यांगं आतू दकारी छ. *ताळो* कनायीज *तातो* रेयेनी तो कल्डो/नरमो रच्. "ताळो तातो रच् ई संकल्पना भाषाविज्ञानेर निकषेमं बेसेनी.भाषाविज्ञानेमं " मर्धा,मूर्धन्य ई संकल्पना छ. 

              गोरमाटी गणसमाज ई धरमूळेती "नागवंशीय" छ. "नाग हा उष्णरक्त प्राणी असून तो उष्णकटिबंध म्हणजे भूमध्यरेषेच्या सभोवताली आढळतो. मानवाचा आणि नागाचा जन्म याच भागात झालेला आहे. मानसाचा नागा सोबत उत्पतीपासून संबंध आहे" (नागवंशीय इतिहास- आम्ही नागवंशीय ? प्रा.अनराज टिपले) 

              आतं ई संदर्भ घणो मोलेरो ठरच्.गोरमाटी गणसमाज ई उष्ण कतो तातो लोईरो कतोज नागवंशीय छ ई भावसुचकता *ताडो सीळो करं!* ये आसासेर रूपावली माईती ध्वनीत वच्.

       नागवंशीय गणसमाज ई धरतीपरेरो पेलो आदिम गणसमाज छ. नागेती साम्य दकाळेसारु आपणे जीभेनं ताते सोनेती नागेवांग थोडसेक चीर देयेर वयीवाट गोरमाटी गणसमाजे सवायी दुसरे कूणसीज समाजेमं आढळ आयेनी.आज भी गोरमाटी नागेर नाम लेयेनी.साप काटखादो जेनं "पान लाग्गो कच्. पान > पणि ये वंशवाचक  सब्द छ. सिंधू धाटीर पणि गणेमं मातेपं सिंग खसोडेर,चीर देयेर वयीवाट रं हानू प्र.रा.देशमुख कच्. 

        कायीक अभ्यासक पणि गणेर वांशिक ओळख लुयेसारु पणि ये सब्देर नातो बेपार,पाणी ये सब्देती जोडच्.पणि ये नुसता बेपार/लदेणीज कोनी करतेते तो ओ उत्कृष्ट कास्तकार,मजूर भी रं ई सामाजिक अवस्था भी धेनेमं लेणू गरजेर छ.

               भाषामाईती भाषिक समाज वाचेन मळच्.वेकरणिक  आन् भाषाविज्ञानेर डीलेती गोरमाटी बोलीभाषानं *भाषा* करन प्रतिष्ठा मळान देणू ईज मार लकणीर प्रपंचेलारेरो हेतु छ. 

       दकेर वात ई छ क, हाम हामार याडी भाषानं एक डाटामं कोनी ला सकरे.जनगणना अहवालेमं याडी भाषार दी दी तीन तीन "कोड" दकावच्. कुणसे कोडयुक्त भाषानं घटनात्मक दर्जा देणू ई पेच पड सकच्.   मानववंशशास्त्र आन् भाषाशास्त्रेर निकष पुरो करेर बाद भी गोरमाटी गणसमाज ई अनुसूचित जमातीर एक सूचीमं  आयेर मसकल वेजारो छ येरो कारण एक डाटारो अभाव!

          सिंधू लिपीर भाषार प्रकृतीती गोरमाटी बोलीभाषारो  घणो कनेरो नातो दकावच्. सिंधू धाटीमं गोरमाटी बोलीभाषा लोकभाषा करन वराजरीती.ऋग्वेदेमाईर सरमा पणिर संवादेपरती ई स्पष्ट वच्. ऊज भाषा गोर गण बोलच् (डाॅ.एस.पी.पवार) सरमा ई इंद्रेर गुप्त हेर रं. इंद्रेनं चाडी लगान नंगरीमं धसेर दरवाजा मालम करन देतीती.सरमा गोरमाटी बोलीभाषिक रं;ढेर पणन् नागवंशीय कोनी रं ई शक्यता भी नकारतू आयेनी. 

           सिंधू लिपीर भाषार प्रकृती एकाक्षरी रं नू सिंधू लिपी वाचेर दावो करेवाळे सदारेर  केणो छ.गोरमाटी बोलीभाषामं भी एकाक्षरी सब्द  जादा परमाणेमं जीवते छ. उद:-


सी = सारखे

सी = थंडी

सू = प्रमाणे

से = सर्व

रु = होतो

ला = आण

ल = घे (आक्षरिक व्यंजन) 

र = होता (आक्षरिक व्यंजन) 

आ = ये

या = आई (मूक्ताक्षर) 

ई = हा, ही

ऊर्जा = तो, ती

क,द,ल,र ये सब्देमाईर ल,र ये सब्द आक्षरिक रेयेरयेती सवाल ऊटं कोनी;पणन् "क,द" ये व्यंजनेनं भी गोरमाटी गणसमाज सब्द करन मान्य करमेलो छ. 

      गोरमाटी बोलीभाषा माईर छो स्वरे पयकी पाच स्वर मुखर तो "अ" स्वर अज्ञात रच्. गोरमाटी बोलीभाषार सब्देर उच्चार प्रकृतीमं "अ" स्वर खती पसरट तो कती आखूड तो कती पूर्ण लोप आसे अज्ञात रूपेमं आढळच्.

      गोरमाटी बोलीभाषार प्रकृती दीर्घ रेयेरयेती क,द ये ध्वनी उच्चारतूवणा "अ" स्वर पसरट रूपेमं ध्वनीत वच्, करनज "क,द" येनेनं एकाक्षरी सब्द मानतू आवच्. 

        गोरमाटी बोलीभाषार ई उच्चार प्रकृती भाषावैज्ञानिकेर धेनेमं लादेणू ई आपणो काम छ..! 


                 *भीमणीपुत्र*

        *मोहन गणुजी नायक*

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